तुम्हारे एक झूठ पर टिकी थी मेरी गृहस्थी मेरे सपने मेरी ख़ुशियाँ तुम्हारा एक सुनामी सच बहा ले गया मेरा सब कुछ।
हिंदी समय में दिव्या माथुर की रचनाएँ